मैकोले शिक्षा पधति
कोई भी देश जब आजाद होता है तो सब से पहला कम अपने देश की भाषा और शिक्षा पधति मे सुधार करता है . जब तुर्क आजाद हुआ तब उन के राजा ने पुछा की तुर्क की भाषा का विस्तार करने मे कितना समय लग जायेगा . तुर्क के अधिकारयो ने कहाँ की 12 साल . राजा ने कहाँ की अब से कल सवेरे तक 12 घंटे हो जायेंगे .तुम समझो की 12 साल हो गये .और सभी देश मे सभी कार्य कल से तुर्क की भाषा मे होने चाहियें . और असा ही हुआ .
लकिन मैं देख रहा हूँ यहाँ तो भारत को आजाद हुयें 65 साल से भी अधिक हो गयें है .हमारे देश की शिक्षा और हमारे संस्कार पस्ताया जगा से प्रभावित हो रहे है . आज हमारे युवाओ के आदर्श कोई फिल्म स्टार कोई हीरोइन जैसे अश्लील युवक युवतियां हो गयें है .बड़े शर्म की बात है . यहाँ से वो क्या शिक्षा ले सकते है . वो आप आज देख रहे है . सच आज मैकोले की शिक्षा पधति जो भारत को गुलाम बनाने की लिए बनायीं थी पूर्णतया सार्थक हो गयी है . ताकि भारत वासी अतमा और मन से अंग्रेज हो जायें तो भारत को गुलाम बनना कोई मुश्किल नही है .
मित्रों मैं आज आप को मैकोले की शिक्षा पधति से परिचित करता हूँ . एक मैकोले नाम का अंग्रेज अधिकारी 1840 इ मे शिक्षा के लिए पाठ्यकर्म तय करके चला गया . वो अधिकारी मर गया और उनकी कईं पीढियां चली . लकिन 1840 इ का पाठयक्रम जो मैकोले ने तयार किया था वो भारत मे आज भी 66 साल बाद भी 2012 मे भी भारत मे चल रहा है . ये बहुत अफ़सोस की बात है . मैकोले ये कहता था की भारत मे एक असा शिक्षा पाठयक्रम तयार करना है जिससे भारत वासी शारीर से दिखने मे भारतीय लगें . लकिन उनकी अतमा और विचार ,मन अंग्रेजी हो . तो फिर हमे भारत कोई गुलाम करने मे कोई जरुरत नही . भारत वासी बहुत आसानी से हमारे गुलाम हो जायेंगे . वो असी शिक्षा छोड़ कर गया वो अभी भी चल रहीं है .
बहार के लिए बहुत बड़ा दुर्भाग्य है .मैकोले ने एक convent school खोला था .जो सब से पहले कोलकत्ता मे खोला गया था . वो school आज हजारो की संख्या मे भारत मे हो गयें है .अब गाँव मे छोटे शहरों मे कान्वेंट स्कूल खुल गयें .
जिस शिक्षा पधति को मैकोले ने भारत ने लागु किया उसे अपने देश मे लागु नही किया . अगर आप अंग्रेजो के देश मे जायेंगे और देखें गे तो उन की शिक्षा पधति बिलकुल अलग है भारत से . भारत की शिक्षा व्यवस्था मे अंग्रेजो ने भारतीयों को एक निश्चित माप दंड दे के अनुसार फ़ैल और पास होने का नियम बनना रखा है . 33 % या उस से जयादा मिले तो पास अन्यथा फेल ये अंग्रेजो का बनाया माप दंड है . और ये जो परीक्षा व्यवस्था हमारे यहाँ चल रहीं है . ये सब अंग्रेजो की बनायीं हुयी है . साल भर मु विधार्तियों को कुछ राटाना और 1 या 2 दिन मे उनसे सब लिख व लेना रट के वो लिखेंगे कॉपी मे और 100 मे से 53 60 70 77 90 % जो अंक अ जायेंगे उनसे विधार्तियों का आंकलन करना ये होशियार है या मुर्ख है . अंग्रेजो के देश मे अगर आप जाकर देखेंगे तो ये पूरी शिक्षा व्यवस्था उन्हें बदल रखीं है . अंको के आधार पर अंग्रेजो के किसी देश मे किसी विधारती का आंकलन नही होता अंग्रेज ही क्यूँ फ्रांसीसियों के देश मे भी विधार्तियों को कंकलन अंको के आधार पर नही होता . अमेरिका मे भी किसी विधारती का आंकलन अंको के आधार पर नही होता।
अंग्रेजो ने जो हमारे देशमे चलाया अपने देश मे वो नही अपनाया .
क्यूँ की वो जानते थे की ये शिक्षा व्यवस्था पूरण रूप से गलत है . इस मे विधारती फेइल नही होता पूरी शिक्षा व्यवस्था फेल होती है . क्यूँ की विद्यार्थी के बारें ये माना जाता है की विद्यार्थी मिटटी का कच्चा घड़ा होता है जैसे आप उसे बनना देंगे वैसे हो जायेगा . अगर कोई शिक्षा व्यवस्था किसी विद्यार्थी को फेल करती है तो सारी शिक्षा व्यवस्था फेल होती है .