मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012


                                             मैकोले  शिक्षा  पधति

कोई भी देश जब आजाद होता है तो सब से पहला कम  अपने देश की भाषा और शिक्षा पधति  मे  सुधार करता है . जब तुर्क आजाद हुआ तब उन के राजा ने पुछा  की तुर्क की भाषा का विस्तार करने मे  कितना समय लग जायेगा . तुर्क के अधिकारयो ने कहाँ  की 12 साल .   राजा ने कहाँ की अब से कल सवेरे तक 12 घंटे हो जायेंगे  .तुम समझो की 12 साल हो गये .और सभी देश मे सभी कार्य कल से तुर्क की भाषा मे होने चाहियें . और असा ही हुआ .
 
लकिन मैं देख रहा  हूँ यहाँ तो भारत को आजाद हुयें  65 साल से भी अधिक हो गयें है .हमारे देश की शिक्षा  और हमारे संस्कार पस्ताया जगा से प्रभावित हो रहे है . आज हमारे युवाओ के आदर्श  कोई फिल्म स्टार कोई हीरोइन  जैसे अश्लील  युवक युवतियां हो गयें है .बड़े शर्म की बात है . यहाँ से वो क्या  शिक्षा  ले  सकते है . वो आप आज देख रहे है .    सच  आज मैकोले की  शिक्षा   पधति   जो  भारत  को गुलाम  बनाने  की लिए बनायीं थी  पूर्णतया सार्थक हो गयी है .   ताकि भारत  वासी अतमा और मन से  अंग्रेज हो जायें  तो भारत को गुलाम बनना कोई  मुश्किल नही है .
 
 
मित्रों मैं आज आप को मैकोले  की शिक्षा    पधति   से परिचित करता हूँ . एक मैकोले नाम का अंग्रेज  अधिकारी 1840 इ मे शिक्षा के  लिए पाठ्यकर्म  तय  करके चला गया . वो अधिकारी मर गया और उनकी कईं पीढियां  चली  . लकिन 1840 इ का पाठयक्रम  जो मैकोले ने तयार किया था वो भारत मे आज भी 66 साल बाद भी 2012 मे भी भारत मे चल  रहा है .  ये बहुत अफ़सोस की बात है  . मैकोले ये कहता था की  भारत मे  एक असा शिक्षा  पाठयक्रम तयार करना है जिससे  भारत वासी शारीर से दिखने मे  भारतीय  लगें . लकिन उनकी अतमा और  विचार ,मन अंग्रेजी हो . तो फिर हमे भारत कोई गुलाम करने मे कोई  जरुरत नही .  भारत वासी  बहुत आसानी से हमारे गुलाम हो जायेंगे . वो असी शिक्षा छोड़ कर  गया वो अभी भी चल रहीं है .
बहार के लिए बहुत बड़ा दुर्भाग्य है  .मैकोले ने एक convent school  खोला था .जो सब से पहले कोलकत्ता  मे खोला गया था . वो school  आज हजारो की संख्या मे भारत मे  हो गयें है .अब गाँव मे छोटे शहरों मे कान्वेंट स्कूल खुल गयें .
जिस शिक्षा  पधति को मैकोले  ने भारत ने  लागु किया उसे  अपने देश मे लागु नही किया . अगर आप अंग्रेजो के देश मे जायेंगे और देखें गे  तो उन की  शिक्षा पधति बिलकुल अलग है भारत से . भारत की शिक्षा   व्यवस्था मे अंग्रेजो ने  भारतीयों को  एक निश्चित  माप दंड दे के अनुसार  फ़ैल और पास होने का नियम बनना रखा है . 33 % या उस से जयादा मिले तो पास अन्यथा फेल   ये अंग्रेजो का बनाया माप दंड है .  और ये जो परीक्षा  व्यवस्था  हमारे यहाँ चल रहीं  है . ये सब अंग्रेजो की बनायीं हुयी है .  साल भर मु विधार्तियों को कुछ राटाना  और 1 या 2 दिन मे उनसे सब लिख व लेना रट  के वो लिखेंगे कॉपी मे और 100 मे से 53 60 70  77 90 % जो अंक  अ जायेंगे उनसे विधार्तियों का आंकलन करना ये होशियार है या मुर्ख है . अंग्रेजो के देश मे अगर आप जाकर देखेंगे  तो ये पूरी शिक्षा व्यवस्था  उन्हें बदल रखीं है . अंको के आधार पर  अंग्रेजो के किसी देश मे  किसी विधारती का आंकलन नही होता  अंग्रेज  ही क्यूँ फ्रांसीसियों  के देश मे भी विधार्तियों को कंकलन अंको के आधार पर नही होता .  अमेरिका मे भी किसी विधारती का आंकलन अंको के आधार पर नही होता।
अंग्रेजो ने जो हमारे देशमे चलाया अपने  देश मे वो नही अपनाया .
 
 
क्यूँ की वो जानते थे की ये शिक्षा व्यवस्था पूरण रूप से गलत है . इस मे विधारती फेइल नही होता पूरी शिक्षा  व्यवस्था  फेल  होती है . क्यूँ की विद्यार्थी  के बारें ये  माना जाता है की   विद्यार्थी  मिटटी का  कच्चा  घड़ा होता है  जैसे आप उसे बनना देंगे वैसे हो जायेगा . अगर कोई शिक्षा  व्यवस्था किसी विद्यार्थी को फेल करती है  तो सारी  शिक्षा  व्यवस्था  फेल होती  है .
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012


 
 
 
जो हज़ारों साल से नहीं हुआ वो हुआ और भरपूर हुआ वो तारिख हिंदुस्तान के लिए एक ऐतिहासिक दिन है .आज भारत भाग्य विधाता आपके लिए इतिहास के कुछ पन्ने पलट रहा है .
वो स्वर्णिम दिन था ३० अगस्त २००७ ,माननिये एस.एन.श्रीवास्तव कि अदालत ,इलाहाबाद उच्च न्याय्यालय -एक फैसला हुआ और हिन्दुस्तान के इतिहास में जो कभी नहीं हुआ वो हो गया ...न्यायमूर्ति श्रीवास्तव जी ने एक केस का फैसला सुनाते समय अपने आदेश में लिखा .---
"
जब भारत में राष्ट्रिये झंडा ,राष्ट्रिये गान ,राष्ट्रिये पक्षी ,राष्ट्रिये पशु ,राष्ट्रिये फूल हो सकतें हैं तो राष्ट्रिये धर्म शास्त्र क्यूँ नहीं हो सकता आदि काल से हमारे देश में "गीता" हर एक भारतीये को सम्पूर्ण शिक्षा देती आई है अस्तु 
अत: श्रीमद भागवत गीता हिन्दुस्तान का "राष्ट्रिये धर्म शास्त्र " होना चाहिए "
लेकिन जैसा कि हमेशा होता आया है इस देश में वो तथाकथित सेकुलर लोग जिनकी वजह से हमारा देश वर्षों तक गुलामी में रहा ,वही लोग माननिये जज महोदय जी ने जो आदेश दिया उसकी लीपापोती में लग गए --बानगी देखिये --
सुप्रीम कोर्ट के मुख्यनयाधीश -माननिये वी.एन.खरे --"जो उन्होंने (जज एस.एन )कह वो क़ानून सम्मत नहीं है और इस सेकुलर देश में कोई धर्म राष्ट्रिये नहीं हो सकता ."
पूर्व क़ानून मंत्री -शांति भूषन --"एक पोलिसी बनानी चाहिए कि इस तरह के गैरकानूनी निर्णय देने वाले जज कभी नियुक्त नहीं होने चाहिए "
तत्कालीन क़ानून मंत्री -एच.आर.भारद्वाज -" कोई भी जिम्मेदार जज इस तरह के धर्म-विशेष आधारित फैसले नहीं दे सकता ये एक धर्मनिरपेक्ष देश के लिए मान्य नहीं है " 
मित्रों अब आप लोग ही इस बात का निर्णय ले कि क्या ये सरकार और शन्ति भूषण जैसे लोग किस कौम का भला करेंगे ..
उल्लेखनीय है कि इन्ही एस.एन.श्रीवास्तव जी ने अप्रैल २००७ को एक फैसले में कहा था कि "उत्तर प्रदेश में मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं है अत: उनके शिक्षा संस्थानों को विशेष छूट नहीं दी जा सकती "
ये फैसलामें ठीक दुसरे दिन ही "अंतरिम रोक " का आदेश लग गया .और आज तक उस आदेश को वोट बैंक के कारण चुनौती नहीं दी गयी ...
जय जन जय भारत