शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012


 
 
 
जो हज़ारों साल से नहीं हुआ वो हुआ और भरपूर हुआ वो तारिख हिंदुस्तान के लिए एक ऐतिहासिक दिन है .आज भारत भाग्य विधाता आपके लिए इतिहास के कुछ पन्ने पलट रहा है .
वो स्वर्णिम दिन था ३० अगस्त २००७ ,माननिये एस.एन.श्रीवास्तव कि अदालत ,इलाहाबाद उच्च न्याय्यालय -एक फैसला हुआ और हिन्दुस्तान के इतिहास में जो कभी नहीं हुआ वो हो गया ...न्यायमूर्ति श्रीवास्तव जी ने एक केस का फैसला सुनाते समय अपने आदेश में लिखा .---
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जब भारत में राष्ट्रिये झंडा ,राष्ट्रिये गान ,राष्ट्रिये पक्षी ,राष्ट्रिये पशु ,राष्ट्रिये फूल हो सकतें हैं तो राष्ट्रिये धर्म शास्त्र क्यूँ नहीं हो सकता आदि काल से हमारे देश में "गीता" हर एक भारतीये को सम्पूर्ण शिक्षा देती आई है अस्तु 
अत: श्रीमद भागवत गीता हिन्दुस्तान का "राष्ट्रिये धर्म शास्त्र " होना चाहिए "
लेकिन जैसा कि हमेशा होता आया है इस देश में वो तथाकथित सेकुलर लोग जिनकी वजह से हमारा देश वर्षों तक गुलामी में रहा ,वही लोग माननिये जज महोदय जी ने जो आदेश दिया उसकी लीपापोती में लग गए --बानगी देखिये --
सुप्रीम कोर्ट के मुख्यनयाधीश -माननिये वी.एन.खरे --"जो उन्होंने (जज एस.एन )कह वो क़ानून सम्मत नहीं है और इस सेकुलर देश में कोई धर्म राष्ट्रिये नहीं हो सकता ."
पूर्व क़ानून मंत्री -शांति भूषन --"एक पोलिसी बनानी चाहिए कि इस तरह के गैरकानूनी निर्णय देने वाले जज कभी नियुक्त नहीं होने चाहिए "
तत्कालीन क़ानून मंत्री -एच.आर.भारद्वाज -" कोई भी जिम्मेदार जज इस तरह के धर्म-विशेष आधारित फैसले नहीं दे सकता ये एक धर्मनिरपेक्ष देश के लिए मान्य नहीं है " 
मित्रों अब आप लोग ही इस बात का निर्णय ले कि क्या ये सरकार और शन्ति भूषण जैसे लोग किस कौम का भला करेंगे ..
उल्लेखनीय है कि इन्ही एस.एन.श्रीवास्तव जी ने अप्रैल २००७ को एक फैसले में कहा था कि "उत्तर प्रदेश में मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं है अत: उनके शिक्षा संस्थानों को विशेष छूट नहीं दी जा सकती "
ये फैसलामें ठीक दुसरे दिन ही "अंतरिम रोक " का आदेश लग गया .और आज तक उस आदेश को वोट बैंक के कारण चुनौती नहीं दी गयी ...
जय जन जय भारत 

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